Poetry of Pratibha Chauhan
पत्तो की डायरी
Tuesday, July 17, 2012
कुछ लम्हे
अरसा गुज़र गया
इक लम्हे की तरह
काश !
ये सफर कभी खत्म न होता।
मेरे आँसू की हर एक बूँद
समुन्दर बन गई
भले तुमने नहीं समझा
उसकी गहराई को।
---- पत्तो की डायरी से
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