लहरों ने दिये जख्म
समुन्दर उसे सहलाता रहा
यूँ ही सारी रात चाँद
मुझे रोशनी से नहलाता रहा
निशां न बचा कोई
सुबह बिस्तर से उठने तलक
धूप के रेशमीं आगोश से
वो मेरा दर्द भी जाता रहा।
---- पत्तो की डायरी से
समुन्दर उसे सहलाता रहा
यूँ ही सारी रात चाँद
मुझे रोशनी से नहलाता रहा
निशां न बचा कोई
सुबह बिस्तर से उठने तलक
धूप के रेशमीं आगोश से
वो मेरा दर्द भी जाता रहा।
---- पत्तो की डायरी से
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