Saturday, February 18, 2012

माँ
















तुम बिन लोक जगत मर्माहत
सूने अंचल और इन्द्रधनुष 
प्रेम,त्याग,क्षमा,दया की धारा
धैर्य,कुशलता,धर्म परायण
जीवन रहा तुम्हारा,
इठलाती,बलखाती
गुण तेरे ही गाती माँ
न पड़ता कम गुणगान तुम्हारा
तूलिका घिसती जाती माँ,
तुम सरस्वती  ज्ञान स्वरों से नहलाओ
जितने भी घट पीना चाहूँ
उतने आज पिलाओ,
ज्ञान दीप्ति लेने देव भी खड़े हुए
मत झुठलाओ
उजियारा मन कर जाओ।






2 comments:

  1. Very good and thanks a lot because you have started writing blog I think it will continue with good poems but kindly write something on the point of Law. Thanks once again.

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