मधुरतम काव्य
साधना कि भूमि पर
बसंती हवा से
हर्श-विशाद की देह पर
लिखा जाता है,
कोमल विचार शैय्या से
ह्रदय की गहराई पर
अभिनन्दन करता
यौवन बरसाता है,
भवन और भवनों की
कतारों पर लिखे लेख
गुफाओं की देह को उकेरते कर्कश तीर
जीवन की लय ताल को
स्याही में भिगाता है,
पर्वतों की चाँदनी,
सागर की शान्ति,
पपीहे की धुन,
और गीतों के कणों को
अधरों पर सजाता है,
गौरैया का नीड़,
नई नवेली का घूँघट,
कैन्वस का आखिरी रंग,
और कल्पना की आखिरी पंक्ति को
नयी दुनिया दिखाता है,
प्रकृति के उजले रंग में
गुलदस्तों सदृश
बंद पलकों के चित्र
सांसों की आवृत्ति बन
रात्रि का दीपक
दिन का सूरज बन जाता है।
apne bahut achchha likha hai,kafi sunder kavita hai,kavita ka akhiri panktiyan bahut sunder hain. Thanks alot for that.
ReplyDeleteसुन्दर कविता के लिए आप बधाई के पात्र हैं।
ReplyDeleteGood imagination.Thanks for this poetry especially last stanza.
ReplyDeleteकविता की आखिरी लाइनें अच्छी हैं,सुन्दर,परन्तु ये बतायें कि कानून पर आपको क्या लिखना है।
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