मैंने ज्यो ही रखा पहला कदम
निगाह एक बच्चे के आँसुओं से टकराकर दिल में उतर गई
धीरे से मैंने रूँधाई को दबाकर प्रश्न किया
कब से यहाँ हो बेटा
नीचे सिर झुकाए,
नजरें बचाए
बोला कि एक वर्ष से हूँ
माँ की बहुत याद आती है,
माँ हर बार आती है
रोकर चली जाती है,
पापा भी आते हैं
सिर झुकाकर चले जाते हैं,
दिन निकलता है
फिर अंधेरे में खो जाता है
मैं अपनी बारी का इन्तजार करता हूँ
फिर जाने क्या हो जाता है
मैं फिर रह जाता हूँ,
फिर माँ आती है,
फिर रोकर जाती है।
मैं बापस आता हूँ ,
सोचने मे रात निकल जाती है
कि आखिर कौन सी संस्कृति मूल्यों को निगल रही है
जिन हाथों को ज़रूरत है किताबों की
उनमें हथकड़ी डल रही है।
जिन हाथों को ज़रूरत है किताबों की
उनमें हथकड़ी डल रही है।
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