आज खुलीं आँखें गर्वीलीं
आज खुलीं आँखें गर्वीलीं
काली पट्टी की देवी के हाथों में देखो
समय ने मधु मदिरा पीली
आज खुलीं------
सोच रहा मानस बेचारा
इन रहस्यमयी कर के बिन्दू पर
कहाँ गये वे धन के प्याले
मान प्रतिष्ठा के रखवाले
दिया कटोरा इन हाथों में
फूलों की भी साँसें गीली,
आज खुलीं-----
वे हाथ बँधे प्रतिनिधि के आगे
जो झुके कभी न काँधों से नीचे
कैसा खेल खिलाया प्रभु ने
पराधीनता के जीवन में
झुक गया मान घुटनों के नीचे
पड़ी देह प्रिया की पीली
आज खुलीं----
मन ही मन घुटता दम
मात-पिता का छूटा दामन
मुझ जैसे ही उर के छाले
मानवता के विषधर काले
जो तनकर खड़े थे खड़े कभी
चोटों से रीढ़ पड़ी है नीली
आज खुलीं-----
जो झूठ बोलता था दर्पण
आज कर रहा मौन समर्पण
मानवता के प्रतिनिधि की वाणी
अलग हुआ दूध और पानी
उस ममता का तृप्त हुआ मन
जो बिन बेटे के ही जी ली
आज खुलीं-------
आज खुलीं आँखें गर्वीलीं
काली पट्टी की देवी के हाथों में देखो
समय ने मधु मदिरा पीली
आज खुलीं------
सोच रहा मानस बेचारा
इन रहस्यमयी कर के बिन्दू पर
कहाँ गये वे धन के प्याले
मान प्रतिष्ठा के रखवाले
दिया कटोरा इन हाथों में
फूलों की भी साँसें गीली,
आज खुलीं-----
वे हाथ बँधे प्रतिनिधि के आगे
जो झुके कभी न काँधों से नीचे
कैसा खेल खिलाया प्रभु ने
पराधीनता के जीवन में
झुक गया मान घुटनों के नीचे
पड़ी देह प्रिया की पीली
आज खुलीं----
मन ही मन घुटता दम
मात-पिता का छूटा दामन
मुझ जैसे ही उर के छाले
मानवता के विषधर काले
जो तनकर खड़े थे खड़े कभी
चोटों से रीढ़ पड़ी है नीली
आज खुलीं-----
जो झूठ बोलता था दर्पण
आज कर रहा मौन समर्पण
मानवता के प्रतिनिधि की वाणी
अलग हुआ दूध और पानी
उस ममता का तृप्त हुआ मन
जो बिन बेटे के ही जी ली
आज खुलीं-------