Thursday, October 6, 2016



            आज का दिन 


शताब्दियों ने लिखी है आज
अपने वर्तमान की आख़िरी पंक्ति

आज का दिन व्यर्थ नहीं होगा
चुप नहीं रहगी पेड़ पर चिड़िया
न ख़ामोश रहेंगी
पेड़ों की टहनियाँ

न प्यासी गर्म हवा संगीत को पिएगी
न धरती की छाती ही फटेगी
अन्तहीन शुष्कता में

न मुरझाएँगे हलों के चेहरे
नहीं कुचली जाएँगी बालियाँ बर्फ़ की मोटी बून्दों से

बेहाल खुली चोंचों को
मिलेगी समय से राहत

नहीं करेगी ताण्डव नग्नता
आकाशगंगा की तरह ,

पीली सरसों से पीले होंगे बिटिया के हाथ
अबकी जेठ - घर-भर,
आएगा तिलिस्मी चादर ओढ़े

न अब उड़ेगा, न उड़ा ले जाएगा
चेहरों के रंग
आँखों के सपने,
दिलों की आस,

भर देगा आँखों में चमक
आँखों से होता हुआ आँतों तक जाएगा

बुझाएगा पेट की आग ये बादल
आज के वर्तमान मे......................Pratibha Chauhan 

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