Wednesday, December 6, 2017

आज का दिन

शताब्दियों ने लिखी है आज
अपने वर्तमान की आखिरी पंक्ति

आज का दिन व्यर्थ नहीं होगा
चुप नहीं रहगी पेड़ पर चिड़िया
खामोश रहेंगी
पेड़ों की टहनियाँ

प्यासी गर्म हवा संगीत को पियेगी
धरती की छाती ही फटेगी
अंतहीन शुष्कता में

मुरझायेंगे हलों के चेहरे
नहीं कुचली जायेंगी बालियाँ बर्फ की मोटी बूँदों से

बेहाल खुली चोंचों को
मिलेगी समय से राहत

नहीं करेगी तांडव नग्नता
आकाश गंगा की तरह ,

पीली सरसों से पीले होंगे बिटिया के हाथ
अबकी जेठ- घरभर,
आयेगा तिलिस्मी चादर ओढ़े ,

अब उड़ेगा , उड़ा ले जायेगा
चेहरों के रंग
आँखों के सपने ,
दिलों की आस,

भर देगा आँखों में चमक
आँखों से होता हुआ आँतों तक जायेगा

बुझायेगा पेट की आग ये बादल

आज के वर्तमान में।

Pratibha Chahuhan ...

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