आज का दिन
शताब्दियों ने लिखी है आज
अपने वर्तमान की आखिरी पंक्ति
आज का दिन व्यर्थ नहीं होगा
चुप नहीं रहगी पेड़ पर चिड़िया
न खामोश रहेंगी
पेड़ों की टहनियाँ
न धरती की छाती ही फटेगी
अंतहीन शुष्कता में
न मुरझायेंगे हलों के चेहरे
नहीं कुचली जायेंगी बालियाँ बर्फ की मोटी बूँदों से
बेहाल खुली चोंचों को
मिलेगी समय से राहत
नहीं करेगी तांडव नग्नता
आकाश गंगा की तरह ,
पीली सरसों से पीले होंगे बिटिया के हाथ
अबकी जेठ- घर – भर,
आयेगा तिलिस्मी चादर ओढ़े ,
न अब उड़ेगा ,न उड़ा ले जायेगा
चेहरों के रंग
आँखों के सपने ,
दिलों की आस,
भर देगा आँखों में चमक
आँखों से होता हुआ आँतों तक जायेगा
बुझायेगा पेट की आग ये बादल
आज के वर्तमान में।
Pratibha Chahuhan ...
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