नियति
काला
बादल निगलने की फिराक में है....
नीला
आसमान
लाल
सूरज
हरी
धरती
पर हजार
बृह्माण्डों की ताकत भी
असफल
रही नियति को निगलने में।
माँओं
की
नींद
गुथ
जाती है माँओं की नींद
लोरियों
में,
जिनसे
बुना होता है
हमारे
सपनों का संसार
आजाद
पंखों से उड़ने वाली बुलबुलें
उड़ा
ले जातीं हैं माँओं की नींद भी
गूँथती
हैं अब वे
अपनीं
नींदों को
नये
सपनों को बुनने के लिये,
माँयें
कभी नहीं सोतीं.......
समर्पण
मैं दरिया हूँ
निश्चित है कि समुन्दर में मिलूँगी
और तुम मेरे समुन्दर हो
निश्चित है कि
मुझे अपने आगोश में लोगे
कुछ इस तरह मुझे अपने वजू़द को
तुममें मिटाने की ख़्वाहिश है।
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