Friday, June 22, 2012

यूँ ही

                  




               1.          बंद पलकों के किनारे भिगोये नहीं


                         न शिकवा न शिकायत कभी रोये नहीं


                      पर अपनों ने जाने क्या समझा


                  दिये शिकायतों के तोहफे इतने


               कि हम अरसों तक सोये नहीं।










               2.               आओ चलो एक नज़्म लिखें


                             तुम्हारी इबादत में


                         कयोंकि ख़ुदा को भी मंज़ूर है


                      कि तुम अच्छे


                  तुम्हारे अल्फ़ाज अच्छे ।


                                         ---- पत्तो की डायरी से

ये सबब















तुम्हारे जाने के बाद भी

तुम्हारा अहसास होता है


सांसों की आवाजाही का


दिल के भीतर आभास होता है


आँखों को पढ़ने का सबब 


शायद नहीं आया है हमें अभी


जब पास हो


तो घबराता है मन 


जब दूर जाते हो 


तो बेकरार होता है।

                   ---- पत्तो की डायरी से

तुम ही


















तुम अहसास हो

मैं स्वांस हूँ

तुम प्रेरणा हो 


मैं गति हूँ


तुम ह्रदय हो


मैं स्पन्दन हूँ


तुम न जाने क्या क्या हो


पर मैं सब कुछ नहीं हूँ


स्वयं को तपाकर सुगन्धित बनाया है मैंने


और अब


तुम्हारे मन की अंत:स्थली में


उपजी उस ताजे पुष्प की महक हूँ


जो सुगन्धित करती है


एक एक क्षण


एक एक बूँद


बारिश से पहले और बाद भी


इस लोक के साथ भी इस लोक के बाद भी

मेरे ख़ुदा














1.             अश्क कीमती हैं

                ग़म के खजाने में छुपाकर रखना


                गर रूठ जाये खुदा तो 


                एक बूँद ही काफी है मनाने के लिए।









2.             मेरे ख़ुदा 

                तेरी इनायत और मेरी तक़दीर का रिश्ता 


                इस कदर है महफूज़ 


                कि तेरा नाम आने से पहले


                मेरे हाथों की लकीरें बदल जातीं हैं।



                                      ---- पत्तो की डायरी से
ऐ ज़िन्दगी संभल के चल

मुझे अपने चाँद से ये सवाल करना है


कि अपने लिए थोड़ी सी जगह नहीं तो न सही


पर कुछ ज़ज्वातों का ख्याल करना है


जो लम्हे रह गये अधूरे मुलाकातों के


उन लम्हों का तुझसे मलाल करना है।

            
                             ---- पत्तो की डायरी से
रास्ते के पत्थर उठाए नहीं

सिर्फ ठुकराए जाते हैं


गर ख़ुदा के बन्दों उनको भी दो तरज़ीह


तो शायद एक नया ताज़महल बन जाए।



                           
                            ---- पत्तो की डायरी से
काश मेरे जीने का सबब

दूनिया में कुछ यूँ होता


जज्बात मेरे अपने होते


अहसान तेरा मुझ पर होता


खाली कर देते अरमान सभी


दिल में अश्कों को छुपाकर रखते


गर तूने शिकायत की होती 


और फरमान तेरा अपना होता।



                      ---- पत्तो की डायरी से 
कर ज़माने को रोशन अपनी लौ से इतना

कि तेरी रहनुमाई में हर किसी को ठहरना होगा 

नहीं आएगी खुद मंज़िल तेरे पास यूँ ही


तुझे अपने ही राह-ए-कदम पर चलना होगा

बुझा देंगीं वरना नफ़रत की आँधियां तुझे


यूँ मशाल सा रातभर जलना होगा ।



      
                                                 ---- पत्तो की डायरी से
                           
राहों में हर कोई रहनुमा नहीं होता 

निगाहों में किसी के आसमां नहीं होता


यूँ तो सब करते हैं खुदा की इबादत


पर उसके दिल में सबका आशियां नहीं होता.

गजल संग्रह- “तुम भी नहीं’’ - श्री अनिरुद्ध सिन्हा

              गजल संग्रह- “तुम भी नहीं’’                           ( गज़लकार - श्री अनिरुद्ध सिन्हा)            पृष्ठ -104...