Monday, March 12, 2012

लक्ष्य का मस्तक उठाया


सफलता के हस्थ ने आज
लक्ष्य का मस्तक उठाया
देख तेरा चिर प्रेमी विकल
आज तेरे पास आया-----
मस्तक पर कोटि बल लिए
घायल कितने पद-तल किए
शूल-उपवन साफ करके
अमिट प्रेम-पथ बनाया
               देख तेरा चिर प्रेमी विकल-----
पथ का साथी स्वयं मन है
छोड़ना तो बालपन है
कितने ही साथी थक गये
किसने किसका साथ निभाया
               देख तेरा चिर प्रेमी विकल-----
हाथ थामा जब लगन का
मान सब कुछ मन मगन का
कुछ न कुछ तो दे ही देगा
जिसने इस लौ को लगाया,
                देख तेरा चिर प्रेमी विकल-----
पथिक अकेला ही रह गया
अपनों ने अपना साथ छोड़ा
पर दृढ़ प्रतिज्ञा के लहू को
श्रम की धमनी में बहाया
                देख तेरा चिर प्रेमी विकल-----
आज मिलन की घड़ी है
अश्रु धारा बह रही है
वर्षों से जिसकी थी प्रतीक्षा
आज उसको साथ पाया,
                देख तेरा चिर प्रेमी विकल-----
संदेश यही इतिहास यही
चलने का पल आज अभी
नव-भास्कर की थाम किरन
छोड़ दो जो भी गँवाया,
                 देख तेरा चिर प्रेमी विकल-----
उगते सूर्य की लोग जय करने लगे
सिर झुकाकर भेंट जल करने लगे
वो कतार में आगे खड़े थे
जिन्होने कभी था मुँह घुमाया
                 देख तेरा चिर प्रेमी विकल-----
जान कर मन मुस्कुराया मंद
आज पूरे हुए मन के स्वप्न
पर दुख इस बात पर कि
कितनों ने ये राज जान पाया
देख तेरा चिर प्रेमी विकल----

                       ---- पत्तो की डायरी से

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