Monday, March 5, 2012

जिन्दगी का नेटवर्क

हर आदमी की शिकायत है
कि कोई उन्हें याद नहीं करता
दो शब्द भी,
दो घड़ी ही
जब बात होती है
तो सिर्फ तारों से मुलाकात होती है,
फोन से शाम को
बस काम से,सिर्फ नाम को
जब टैरिफ पड़ा हो
और फ्री कॉल होती है,
अगर शिकायत है
कि साहब याद नहीं करते हैं
तो सीधा सा जबाब है
जो बड़ा ही लाजबाब है
तुम्हारा फोन नहीं लग रहा था
शायद नेटवर्क विजी चल रहा था,
जब ऐसे ही लम्बे समय तक
मुलाकात न हो
फोन पर बात न हो
तो समझ लेना
कि फोन नहीं लग रहा है
और नेटवर्क विजी चल रहा है,
कितना अच्छा था पुराना ज़माना
जब लोग याद करते
तो मुलाकात करते
प्यार बहुत था आपस में
जबकि वर्षों बाद मिला करते,
अब तो फोन पर
सुबह शाम मुलाकात होती है
फिर भी शिकायत रहती है
कि कोई उन्हें याद नहीं करता,
सच तो है कि हम
उलझे हैं खुद
भागमभाग के नेटवर्क में,
झगड़े झंझट के नेटवर्क में,
टीवी और फोन के नेटवर्क में,
नौकरी और लोन के नेटवर्क में,
फंसे हैं जब तक नेटवर्क में
याद न करेंगे ,न याद आयेंगे
उलझने सुलझाते यूँ ही जीवन बितायेंगे
अच्छा हो ,अगर जीवन से सीखें
और खुद को बचायें
जीवन जिएं खुद भी
आगामी पीढ़ी को भी सिखाएं।

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गजल संग्रह- “तुम भी नहीं’’ - श्री अनिरुद्ध सिन्हा

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