Tuesday, August 16, 2016

[राष्ट्रीय चरित्र]
यूनान की ख़ूबसूरती,
रोम की विधि,
इस्राइल का मजहब,

हे देवों
भारत का धर्म तो
ईश्वरीय पूँजी का पुँज है
आकाश की गूँज है
सूरज की गठरी है
तुम धरती पर आकर देखो
उन्हें कर्मकाण्ड मिले हैं सौगात में
और मुझे तत्वज्ञान का दर्शन
उन्हें अभिमान है ईश्वर होने का
तो प्राणियों पर दया मेरा मौलिक स्वभाव
उनकी भेद भरी दृष्टि
तो मेरी एकात्म अनुभूति--बेमेल है
प्रदीप्ति अतीत से
छनकर आती सुनहरी धूप की गरमी
दीप्तिपूर्ण प्रिज्म की त्रिविमीय श्रृंखला है
पर
शायद तुम्हें अहसास भी नहीं
चन्द दिनों पूर्व उड़ता हुआ चाँद
नीली झील में गिर गया
जिसे ढूँढा गया
खेल के मैदान से विज्ञान की लैब तक
सुनो
कल रात्रि दूसरे देशों ने
उसे अपनी नीली झील से निकाल लिया
जानते हो ?
त्रासदी पूर्ण नाकामी में
उनकी खामियों की जड़ें
राष्ट्रीय चरित्र के अभाव में पोषित हो रही है
हे देव
अभी समय है
बिखेर दो धरा पर राष्ट्रीय रंग
गढ़ दो नया चरित्र
ओ धरा
अब जन्म दो
वीर सपूतों को
जो निकाल सकें उतराते हुए चाँद को
दिन रात के अथक प्रयत्नों में
अपनी देह-पाँवों को छलनी कर देने वाले ज़ज़्बों के साथ
जन्म-जन्मान्तर के लिए। ......Pratibha Chauhan

 

No comments:

Post a Comment

गजल संग्रह- “तुम भी नहीं’’ - श्री अनिरुद्ध सिन्हा

              गजल संग्रह- “तुम भी नहीं’’                           ( गज़लकार - श्री अनिरुद्ध सिन्हा)            पृष्ठ -104...