Sunday, September 5, 2021

गजल संग्रह- “तुम भी नहीं’’ - श्री अनिरुद्ध सिन्हा

           

 गजल संग्रह- “तुम भी नहीं’’                 
        (गज़लकार - श्री अनिरुद्ध सिन्हा)
           पृष्ठ -104 
        प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ    

                                                                        

                                                                                (श्री अनिरुद्ध सिन्हा)
                    

                 हिंदी साहित्य में ग़ज़ल को नई मजबूती से रखने वाले बड़े बड़े साहित्यकार हुए हैं जिन्होंने भावनाओं की गहराई को सरल, प्रभावी और ललित्यमय शब्दों में जीवन के उतार-चढ़ाव के साथ विचारों कि उत्तम पराकाष्ठा से जोड़ते हुए हिंदी गजल की प्रक्रिया को बनाए रखा है। गजल संप्रेषणीय और छंदयुक्त होने  के कारण लोगों के हृदयों को स्पर्श करती हुई जीवन के विभिन्न आयामों को कथ्य की दृष्टि से बड़े ही कोमल और भावपूर्ण ढंग से रखती है । ऐसे ही प्रतिष्ठित और वरिष्ठ गजलकार हैं अनिरुद्ध सिन्हा जी वे न केवल ग़ज़ल की अभिव्यक्ति के सशक्त हस्ताक्षर हैं बल्कि उनके द्वारा जो भी हमारे समक्ष प्रस्तुत किया जाता है वह शब्दों की दृष्टि से अत्यंत सरल और संवेदना व विचार के दृष्टिकोण से गंभीर है । इनकी गजलों में भावों की प्रधानता , मन को स्पष्ट करने वाली अनुभूतियां तथा लयात्मकता के साथ साथ छंद रूप का सौंदर्य भी विद्यमान रहता है। अपने लेखन का आधार इन्होंने सामान्य विषयों को बनाया है और जीवन की विविधताओं को शब्दों के तारों में पिरोते हुए सुंदर व सजीले ढंग से पाठक के सामने प्रस्तुत किया है इन दो पंक्तियों में पूरा संसार निहित है-

                          उलझनों से तो कभी प्यार से कट जाती है 

                          जिंदगी वक्त की रफ्तार से कट जाती है 

अन्य दो लाइनों में 

                          यूं तो मुश्किल है बहुत इसको मिटाना साहब 

                          दुश्मनी प्यार की तलवार से कट जाती है 

        एक बहुत बड़ा संदेश अपनी ग़ज़ल में दो पंक्तियों में देते हैं जो कि कहीं न कहीं हमारे जीवन का सम्पूर्ण सार ही नहीं बल्कि व्यक्ति के जीवन का उतार-चढ़ाव का भी है । कभी दुख तो कभी सुख आते ही रहते हैं और इसी तरह हमारी सभ्यता संस्कृति में भी उतार-चढ़ाव आता है और मनुष्य की भावों के विभिन्न रंगों को अलग-अलग समय पर देखा जा सकता है। अनिरुद्ध सिन्हा जी  कहते हैं -

                                     पतझरों  का मौसम है पत्तियां नहीं मिलतीं   

                                     गुल नजर नहीं आते तितलियां नहीं मिलतीं

                                      मंजिलों की ऊंचाई तय करें भला कैसे 

                                     पाओं को भरोसे की सीढ़ियां नहीं मिलतीं

समकालीन हिंदी गजल में समाज के लोकतांत्रिक विकास का विश्लेषण भी मिलता है। कल्पनाशीलता का नया आयाम और  जीवन शैली के विभिन्न रंग भी देखने को मिलते हैं। जीवन और व्यक्ति के समाज को केंद्र में रखकर ही सर्वत्र गजलें लिखी जा रही हैं परंतु अनिरुद्ध सिन्हा जी इन सभी में एक अलग स्थान रखते हैं । उनकी कथ्य -शिल्प शैली, विचार, लयात्मकता, तीखापन ,संवेदना ,भाव संज्ञानता ,बुद्धि -विवेक का बखूबी वैचारिक संघर्ष दिखाई देता है। ऐसे समय में जब की हिंदी साहित्य संक्रमण काल से गुजर रहा है वैसी परिस्थिति में सिन्हा जी की गजल मजबूती से अपना स्थान रखती है।

दो पंक्तियों में बड़ी सुंदर बात कहते हैं -

मेरा उससे हसीन रिश्ता है

  मैं समुंदर हूँ वो दरिया है

       आजकल प्रतिस्पर्धा एवं भौतिकवादी युग में साहित्य के सामने विषम परिस्थितियां खड़ी हुई हैं । आज का युवा साहित्य से दूर होता हुआ प्रतीत हो रहा है । वह साहित्य  पुस्तकों को खरीद कर पढ़ने की बजाय अन्य अर्थहीन कार्यों में अपना समय बर्बाद करना ज्यादा उचित समझता है । ऐसी परिस्थिति में परिवेश और जीवन की बारीकियों को समझती हुई गजल अपने सरल रूप में जब युवाओं के सामने प्रस्तुत होती है तो आज भी वे गज़ल को सुनकर झूम उठते हैं। अतः ऐसी परिस्थिति में ग़ज़ल की जिम्मेदारियां कुछ ज्यादा ही पड़ जाती हैं। गजल मनुष्य को मनुष्य के समीप लाने का कार्य करती है वह एक ऐसा पुल है जो दिलों को दिलों से जोड़ता है। रिश्तो की डोर को बचाए रखने में अपना प्रयास करती रहती है।

हर ओर भले धुंध है लेकिन यह छूटेगी 

सूरज को अंधेरों का कभी डर नहीं होता 

खुशियां तो रहा करती हैं बा शौक इन्हीं  में 

आंखों में हर इक वक्त समंदर नहीं होता


          छंद  में अपने पाठकों को आकर्षित करने का एक बहुत बड़ी शक्ति होती है और यही इसका सौंदर्य भी है । इस सौन्दर्य को हूबहू शब्दों के माध्यम से अपनी गजलों में उतार देने की कला सिन्हा जी बखूबी जानते हैं । यही वजह है कि उनकी गजलें काफी व्यापक स्तर पर लोकप्रिय हैं । वे जितने प्रतिष्ठित ग़ज़ल कार हैं उतने ही लोकप्रिय भी। यह सत्य है कि अनिरुद्ध सिन्हा जी ने गजल कार के रूप में एक ऊंची पहचान बनाई है, ठीक उसी तरह एक आलोचक के रूप में भी काफी नाम कमाया है। वे अपनी बातों को बड़ी ही बेबाकी से रखते हैं। वे आज के समाज में व्यक्ति के जीवन में जो आमूलचूल परिवर्तन आया है और जो औद्योगिकरण, बाजार, व्यापार व  ग्लोबलाइजेशन का असर आया है उसको वह स्वीकार करने से हिचकते नहीं है-

झूठ सच  से तो जुदा तुम भी नहीं हम भी नहीं 

आदमी हैं देवता तुम भी नहीं हम भी नहीं 

फितरतों में  झूठ शामिल है हमारी दोस्तों 

सच  तो यह है आईना तुम भी नहीं  हम भी नहीं 

समय के साथ साथ व्यक्ति के व्यक्तित्व में आमूलचूल परिवर्तन हुआ लोगों में संवेदनहीनता का विकास हुआ। परंतु यह भी सत्य है कि व्यक्ति की मूल भावनाओं को किसी भी बाहरी ताकत से बदला नहीं जा सकता जब तक कि व्यक्ति कि भावनाओं को छुआ न जाए । आज भी वे कोमल भावनाएं मनुष्य में जीवित हैं यही वजह है कि व्यक्ति के जीवन में साहित्य का एक अनोखा स्थान है। रोजमर्रा जीवन में घटित होने वाली छोटी मोटी चीजों को लेकर भी बड़ी गहरी बात कह देते हैं -

क्या है अपने वक्त की रफ्तार पढ़िए 

खून से तर आज का अखबार पढ़िए 

रात के किस्से बहुत ही पढ़ चुके हैं 

आइए अब सुबह के आसार पढ़िए

यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि अनिरुद्ध सिन्हा जी ने श्रेष्ठतम गजल को प्रस्तुत किया है जिसमें प्रेम भावना भी है, पूर्व मान्यताएं भी हैं और परंपराओं का पुनर्विचार करने की आस्था भी है। कुछ समकालीन सवालों को उठाते हुए वे संवेदना की खोज करते हैं जहां पर व्यक्ति के अंदर कुलबुलाते हुए दबे हुए संवेदन तंतुओं को बाहर निकालने की उनकी व्यापक खोज जारी है। समकालीन हिंदी गजलों की परंपरा में उनका यह अनोखा प्रयास है । उनकी गजलें  अपनी खूबसूरती रंग और रूप के कारण पाठक को एक अनोखी ऊर्जा से भर देती हैं । यही कारण है कि उनकी गजलें वर्तमान समय में सर्वाधिक लोकप्रिय मानी जाती हैं। हम यह उम्मीद करते हैं कि वे अपने अनुभवों से हम लोगों को हमेशा अभिभूत करते रहेंगे और श्रेष्ठतम गजलों को हमारे सामने लाते रहेंगे। 


                                                                                -  प्रतिभा चौहान (कवि एवं लेखक )

 


मेरी कविता -अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका "विभोम स्वर" (संयुक्त राज्य अमेरिका)

अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका "विभोम स्वर" (संयुक्त राज्य अमेरिका) में पढ़ें " जंगल व आदिवासियों को समर्पित" मेरी कविताएं। आदरणीय सुधा ओम ढींगरा जी एवं पंकज सुबीर जी को बहुत बहुत धन्यवाद















































































































लेख- ताकि बचा रहे बचपन










#अंतर्राष्ट्रीय_आदिवासी_दिवस (जंगलों में पगडंडियां)

 #अंतर्राष्ट्रीय_आदिवासी_दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

आदिवासी समुदाय को समर्पित मेरी यह कविता***
वह आदिवासी है
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आसमान में
चमकते हो सूरज की तरह
तुम्हारी गोद में पलती है
धरती की आदिम सभ्यता
कौन मिटाएगा उसे
जो है समस्त सागर ,भू और आकाश में
विद्यमान
सृष्टि का पहला हस्ताक्षर
तैरती हैं हजारों स्मृतियाँ शाखों पर
जो रहते हैं
सम्मान में सदा सिर झुकाए
हरेपन की कहानी लिए
जिसकी आत्मा में रचा बसा जंगल
और जंगल में रचा बसा जिसका अस्तित्व
शांत ,सुदृढ़, पूर्णतः प्राचीन
आदिम सृष्टि के पटल पर
न अस्त होने वाला अविनाशी है
सुनो
वह आदिवासी है ...प्रतिभा चौहान
(प्रकाशाधीन कविता संग्रह "जंगलों में पगडंडियां" से )



Sunday, August 8, 2021

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